Jai Shree Ram
  • August 17, 2024
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दोहा
श्रीगुरु चरन सरोज रज, निज मनु मुकुरु सुधारि।
बरनऊं रघुबर बिमल जसु, जो दायकु फल चारि॥

अर्थ:
मैं श्रीगुरु के चरण कमलों की धूल से अपने मन के दर्पण को स्वच्छ करता हूँ, और फिर रघुनाथजी के पवित्र यश का वर्णन करता हूँ, जो धर्म, अर्थ, काम, और मोक्ष – इन चार प्रकार के फलों को देने वाला है।

दोहा
बुद्धिहीन तनु जानिके, सुमिरौं पवन-कुमार।
बल बुधि बिद्या देहु मोहिं, हरहु कलेस बिकार॥

अर्थ:
हे पवनपुत्र हनुमानजी! मैं आपको स्मरण करता हूँ, क्योंकि मैं अपने आपको बुद्धिहीन और दुर्बल समझता हूँ। कृपया मुझे बल, बुद्धि और ज्ञान प्रदान करें और मेरे कष्टों और दोषों को दूर करें।

चौपाई
जय हनुमान ज्ञान गुन सागर।
जय कपीस तिहुँ लोक उजागर॥
राम दूत अतुलित बल धामा।
अंजनि-पुत्र पवनसुत नामा॥

अर्थ:
जय हो हनुमानजी, आप ज्ञान और गुणों के महासागर हैं। आप वानरों के राजा हैं और तीनों लोकों में प्रसिद्ध हैं। आप श्रीराम के दूत हैं और अपार बल के धाम हैं। आप अंजनी के पुत्र और पवन देवता के पुत्र कहलाते हैं।

महाबीर बिक्रम बजरंगी।
कुमति निवार सुमति के संगी॥
कंचन बरन बिराज सुबेसा।
कानन कुण्डल कुँचित केसा॥

अर्थ:
आप महावीर हैं, आपके पास अद्वितीय पराक्रम है और आप बजरंगबली के नाम से जाने जाते हैं। आप बुरी बुद्धि को नष्ट करते हैं और अच्छी बुद्धि के संग रहते हैं। आपका शरीर सुनहरे रंग का है, आप सुंदर वस्त्र धारण करते हैं, आपके कानों में कुण्डल हैं और आपके बाल घुंघराले हैं।

हाथ वज्र औ ध्वजा बिराजै।
काँधे मूँज जनेऊ साजै॥
संकर सुवन केसरी नंदन।
तेज प्रताप महा जग वंदन॥

अर्थ:
आपके हाथ में वज्र और ध्वजा शोभायमान हैं। आपके कंधे पर मूँज का जनेऊ है। आप शंकरजी के अवतार और केसरी नंदन हैं। आपकी महिमा और प्रताप से संसार वंदन करता है।

विद्यावान गुनी अति चातुर।
राम काज करिबे को आतुर॥
प्रभु चरित्र सुनिबे को रसिया।
राम लखन सीता मन बसिया॥

अर्थ:
आप विद्वान, गुणवान और अत्यंत चतुर हैं। आप श्रीराम के कार्यों को करने के लिए सदैव तत्पर रहते हैं। आप श्रीराम, लक्ष्मण और सीता के चरित्र को सुनने के लिए रसिक हैं और उनके हृदय में बसे रहते हैं।

सूक्ष्म रूप धरि सियहिं दिखावा।
बिकट रूप धरि लंक जरावा॥
भीम रूप धरि असुर सँहारे।
रामचन्द्र के काज सँवारे॥

अर्थ:
आपने सूक्ष्म रूप धारण कर सीता माता को दर्शन दिए और विशाल रूप धारण कर लंका को जलाया। आपने भयंकर रूप धारण कर राक्षसों का संहार किया और श्रीराम के कार्यों को सफल बनाया।

लाय सजीवन लखन जियाये।
श्रीरघुबीर हरषि उर लाये॥
रघुपति कीन्ही बहुत बड़ाई।
तुम मम प्रिय भरतहि सम भाई॥

अर्थ:
आपने संजीवनी बूटी लाकर लक्ष्मणजी का जीवन बचाया, जिससे श्रीराम ने आपको हर्षित होकर हृदय से लगा लिया। श्रीराम ने आपकी बहुत प्रशंसा की और कहा कि आप मुझे भरत जैसे प्रिय हो।

सहस बदन तुम्हरो जस गावैं।
अस कहि श्रीपति कण्ठ लगावैं॥
सनकादिक ब्रह्मादि मुनीसा।
नारद सारद सहित अहीसा॥

अर्थ:
भगवान श्रीराम ने कहा कि सहस्र मुख वाले शेषनाग भी आपका यश गाते हैं। उन्होंने यह कहकर आपको गले लगाया। सनकादिक ऋषि, ब्रह्मा, नारद, सरस्वती और शेषनाग आदि भी आपकी महिमा का गान करते हैं।

जम कुबेर दिगपाल जहाँ ते।
कवि कोविद कहि सके कहाँ ते॥
तुम उपकार सुग्रीवहिं कीन्हा।
राम मिलाय राज पद दीन्हा॥

अर्थ:
यमराज, कुबेर, और दिग्पाल (दिशाओं के रक्षक) आपके यश का वर्णन नहीं कर सकते। आपने सुग्रीव पर उपकार किया, उन्हें श्रीराम से मिलवाया और उन्हें राजपद प्राप्त कराया।

तुम्हरो मंत्र बिभीषन माना।
लंकेस्वर भए सब जग जाना॥
जुग सहस्र जोजन पर भानू।
लील्यो ताहि मधुर फल जानू॥

अर्थ:
आपका मंत्र मानकर विभीषण ने लंका का राज्य प्राप्त किया, और यह सब संसार जानता है। सूर्य जो हजारों योजन दूर था, उसे आपने एक मीठे फल की तरह निगल लिया था।

प्रभु मुद्रिका मेलि मुख माहीं।
जलधि लाँघि गये अचरज नाहीं॥
दुर्गम काज जगत के जेते।
सुगम अनुग्रह तुम्हरे तेते॥

अर्थ:
आपने श्रीराम की मुद्रिका (अंगूठी) को अपने मुख में रखकर समुद्र को लांघ लिया, यह कोई आश्चर्य की बात नहीं है। आपके अनुग्रह से संसार के सभी कठिन कार्य सरल हो जाते हैं।

राम दुआरे तुम रखवारे।
होत न आज्ञा बिनु पैसारे॥
सब सुख लहै तुम्हारी सरना।
तुम रक्षक काहू को डरना॥

अर्थ:
आप श्रीराम के द्वार के रखवाले हैं, आपकी आज्ञा के बिना कोई अंदर नहीं जा सकता। जो आपकी शरण में आते हैं, वे सभी सुख प्राप्त करते हैं। आप रक्षक हैं, तो फिर किसी को डरने की आवश्यकता नहीं है।

आपन तेज सम्हारो आपै।
तीनों लोक हाँक तें काँपै॥
भूत पिसाच निकट नहिं आवै।
महाबीर जब नाम सुनावै॥

अर्थ:
आप अपने तेज को स्वयं ही संभालते हैं, आपकी गर्जना से तीनों लोक कांप उठते हैं। जहाँ महावीर हनुमान का नाम लिया जाता है, वहाँ भूत-प्रेत और पिशाच भी नहीं आ सकते।

नासै रोग हरै सब पीरा।
जपत निरंतर हनुमत बीरा॥
संकट तें हनुमान छुड़ावै।
मन क्रम वचन ध्यान जो लावै॥

अर्थ:
जो भी निरंतर हनुमानजी का नाम जपता है, उसके सभी रोग और कष्ट दूर हो जाते हैं। जो भी मन, कर्म और वचन से हनुमानजी का ध्यान करता है, उसे सभी संकटों से मुक्ति मिलती है।

सब पर राम तपस्वी राजा।
तिन के काज सकल तुम साजा॥
और मनोरथ जो कोई लावै।
सोइ अमित जीवन फल पावै॥

अर्थ:
श्रीराम तपस्वी राजा हैं, और आपने उनके सभी कार्यों को पूरा किया। जो कोई भी अन्य इच्छा लेकर आपके पास आता है, उसे वह अमिट जीवन फल प्राप्त होता है।

चारों जुग परताप तुम्हारा।
है परसिद्ध जगत उजियारा॥
साधु संत के तुम रखवारे।
असुर निकंदन राम दुलारे॥

अर्थ:
आपका प्रताप चारों युगों में प्रसिद्ध है, और आपकी महिमा से जगत प्रकाशित है। आप साधु-संतों के रक्षक हैं और असुरों के संहारक हैं, श्रीराम के प्रिय हैं।

अष्ट सिद्धि नव निधि के दाता।
अस वर दीन्ह जानकी माता॥
राम रसायन तुम्हरे पासा।
सदा रहो रघुपति के दासा॥

अर्थ:
आपको माता जानकी ने अष्ट सिद्धि और नौ निधि का

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